आम की खेती-आम भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय फल है। इसे फलों का राजा कहा जाता है। पूरे भारत में इसकी खेती करीब 11 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में की जाती है जिससे लगभग 95 लाख मैट्रिक टन फल प्रति वर्ष प्राप्त होता है। बिहार प्रदेश में आम के बगीचे के अंतर्गत करीब 1 लाख 45 हजार हैक्टेयर क्षेत्र है जिससे प्रति वर्ष अनुमानत: 14.5 लाख टन फल प्राप्त होता है। व्यवसायिक तौर पर इसकी खेती बड़ी लाभकारी है।
किस्मों का चुनाव
आज भारत में कई किस्में उगायी जाती है। हर किस्म की अपनी अलग विशिष्टता होती है। आम की आदर्श किस्म वह है जिसके फल मध्यम आकार के (1 किलो में 4) हों तथा जिसके गुद्दा की गुणवत्ता सभी को भाये। फलों की गुठली पतली एवं छोटी हो। गूदा रेशारहित, सुवासित मीठा-खट्टा स्वाद के सुरुचिपूर्ण मेल से बना हो। किस्म के वृक्षों में हर साल फलने को प्रवृति हो तथा कीड़े, बीमारियों एवं अन्य व्याधियों के प्रति सहिष्णु है ऐसी आदर्श किस्म की पहचान एवं चयन आवश्यक है। वर्त्तमान में एक भी ऐसी किस्म नहीं हैं जो सभी गुणों से सम्पन्न हो। अत: उपलब्ध किस्मों से ही अपनी पसंद के अनुरूप अधिक उपज देने वाली किस्मों का चुनाव करें। कुछ अच्छी गुणवत्ता वाली किस्मों का चुनाव करें। कुछ अच्छी गुणवत्ता वाली किस्मों के नाम निम्नलिखित है।
मालदह, (लंगड़ा), सिपिया, सुकुल, दशहरी, बम्बई, चौसा, जरदालु, आल्फान्सी, फजली, कृष्णभोग, हिमसागर, गुलाबख़ास आदि। ऊपर लिखी किस्मों के अतिरिक्त बिहार में कुछ ऐसी किस्में हैं जिनके फल बहुत ही उच्च कोटि के हैं तथा काफी लोकप्रिय है जैसे जरदा, मिठुआ, पहाड़फर सिन्दुरिया आदि। समस्तीपुर जिले के पूसा प्रखंड में बथुआ नामक प्रभेद काफी क्षेत्र में उगाया जाता है। इसकी विशेषता यह है कि इसके फल काफी देर से पकते है तथा सबसे अंत में बाजार में आने के कारण अधिक कीमत पर बिकते है। इस किस्म की भंडारण क्षमता भी अधिक है।
पिछले दो दशकों में आम की कई संकर किस्मों का प्रादुर्भाव हुआ है। संकर किस्मों की प्रमुख विशेषता यह है कि इनमें हर साल फलने की प्रवृति पायी जाती है। अत: हर वर्ष फलन प्राप्त करने के लिए आप इन किस्मों का चयन कर सकते है। ये किस्में है – आम्रपाली, मल्लिका, रत्ना, सिन्धु, महमूद बहार, प्रभाशंकर, सबरी, जवाहर, अरका अरुण, अरका अनमोल, मंजीरा, सुंदर लंगड़ा, अफ्जली आदि।
मिट्टी
यों तो आम सभी प्रकार की मिट्टी में पैदा किया जा सकता है यदि इनमें पानी का निकास अच्छा हो। परन्तु सबसे उपयुक्त मिट्टी गहरी दुमट है जिसमें पानी का निकास अच्छा हो और पी.एच. मान 5.5 से 7.5 तक हो। कंकरीली, पथरीली, छिछली तथा अधिक क्षारीय मिट्टी में आम की बागवानी सफल सिद्ध नहीं होती और बहुत कम उपज मिलती है।
बाग़ का संस्थापन
बाग़ लगाने के लिए पहले खेत की अच्छी तरह जुताई कर लें एवं पाटा चलाकर समतल कर लें। अब वृक्ष लगाने की जगह की चिन्हित कर लें। सदैव आम की अच्छी किस्मों के कलमी पौधे लगाये। लगाने की दूरी 10 मी. x 10 मी. रखें एवं एक कतार में दो पौधों के बीच भी 10 मीटर की दूरी रखें। आम्रपाली नामक किस्म 2.5 मी. x 2.5 मी. की दूरी पर लगायी जा सकती है। चिन्हित जगह पर 90 से.मी. (3 फीट) की लम्बाई, 3 फीट चौड़ाई एवं 3 फीट गहराई वाला एक गढ़ा खोदें। खोदे गये सभी गढ़ों को ऊपर की आधी मिट्टी एक तरफ तथा निचले हिस्से को आधी मिट्टी दूसरे तरफ रखें। मिट्टी को 15-20 दिनों तक धूप लगने दें। गढ़ा खोदने का कार्य मई के प्रथम पक्ष में करें। भरते समय गढ़े की ऊपरी मिट्टी में 20-25 किलो कम्पोस्ट, 1 किलो खल्ली एवं 50 ग्राम थीमेट मिलाकर इस मिश्रण को गढ़े में डालें। तत्पश्चात यदि गढ़े में और मिट्टी डालने की आवश्यकता पड़े तो गढ़े से खोदी गयी निचली मिट्टी का इस्तेमाल करें एवं इसी मिट्टी से थाला बनालें। एक दो वर्षा के बाद जब गढ़े में भरी गयी मिट्टी पूर्णत: बैठ जाय पौधों की रोपाई करें। वृक्ष रोपण का कार्य साधारणत: जुलाई अगस्त में किया जाता है जबकि वातावरण में काफी नमी रहती है। फरवरी-मार्च में भी पौधे लगाये जा सकते है परन्तु इनमें उतनी सफलता नहीं मिलती जितनी वर्षा ऋतु में लगाये हुए पौधों में। फरवरी-मार्च में लगाये गये पौधों को अधिक पानी देने की आवश्यकता होती है तथा इन्हें लू से बचाने का भी उचित प्रबंध करना आवश्यक होता है। वृक्ष रोपण बादल वाले दिन या संभवत: शाम के समय करना चाहिए जबकि तेज धूप न हो।
पौधा लगाते समय जड़ों के पास मिट्टी के गोले से लिपटी हुई घास या टाट के टुकड़ों या पोलिथीन की थैली को हटा देना चाहिए तथा यह ध्यान देना चाहिए कि ऐसा करते समय जड़ों को क्षति न पहुंचे। पौधा लगाते समय ध्यान दे कि पौधे को मिट्टी में उतना ही दबाना है जितना कि वह नर्सरी में रखते समय मिट्टी में दबाया गया था। चश्मा या कलम के जुड़ाव का स्थान भूमि तल से करीब 22 सें.मी. (10 इंच) अवश्य ऊपर रहना चाहिए। पौधा लगाने के बाद मिट्टी को अच्छी तरह दबा देना चाहिए और सिंचाई करनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरकों का व्यवहार
लगाने के 1 साल बाद जुलाई-अगस्त में पौधों को निम्न तालिका के अनुसार खाद या उर्वरक देना आरंभ करें। एक वर्ष बाद 10 किलो कम्पोस्ट, आधा किलो खल्ली, 200 ग्राम यूरिया, 50 ग्राम सिंगलसुपर फास्फेट एवं 200 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश का इस्तेमाल करें।
तालिका: आम के वृक्षों के लिए खाद एवं उर्वरकों की मात्रा (किलो ग्राम में)
खाद/उर्वरक | प्रथम वर्ष | प्रतिवर्ष बढ़ाई जानेवाली मात्रा | प्रौढ़ वृक्ष के लिए मात्रा |
कम्पोस्ट | 10.0 | 6.0 | 60 |
अंडी खल्ली | 0.5 | 0.5 | 5.0 |
यूरिया | 0.2 | 0.2 | 2.0 |
सिंगल सुपर फास्फेट | 0.5 | 0.5 | 5.0 |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश | 0.2 | 0.2 | 2.0 |
उर्वरक या खाद का प्रयोग पेड़ के चारों तरफ एक थाला बनाकर करना चाहिए। एक वर्ष के पौधे के लिए ऐसा थाला प्रमुख तने से 30 सें.मी. की दूरी छोड़कर पेड़ के घेरे के दायरे में बनाना चाहिए। मिट्टी को 15 से 20 सें.मी. गहराई तक खोदकर उसमें उर्वरक मिलाना चाहिए। खाद मिलाने के बाद सिंचाई करें। प्रति वर्ष तालिका में दी गई मात्रा बढ़ाते जायें और अंतत: 10 या 11 वर्षो के उपरांत जब वृक्ष प्रौढ़ हो जाय प्रति वर्ष जून-जुलाई में फल को तोड़ने के उपरांत 50-60 किलो कम्पोस्ट, 5 किलो खल्ली, 2 किलो यूरिया, 5 किलो सिंगल सुपर फास्फेट और 2 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति वृक्ष की हिसाब से वृक्ष को परिधि से थोड़ा भीतर की ओर व्यवहार करें। वृक्षों से अधिक फल प्राप्त करने के लिए खाद एवं उर्वरकों का व्यवहार आवश्यक है।
सिंचाई
वृक्षों को गर्मी में सिंचाई देना आवश्यक होती है। प्रारंभिक अवस्था में थाला बनाकर थालों को नालियों द्वारा जोड़कर सिंचाई करना चाहिए। वृक्ष जब बड़े हो जायें तो पूरे खेत की सिंचाई की जा सकती है। फूल लगने से दो माह पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए। फूलों में जब फल लग जाए और मटर के दाने के बराबर हो तब सिंचाई करना चाहिए। सिंचाई करने से फलों का गिरना कम हो जाता है।
बीमारी एवं कीड़े
आम के वृक्षों में मंजर लगते समय या इसके पूर्व कई प्रकार के कीड़ों और बीमारियों का प्रकोप होता है। इनसे पौधों एवं फलों को बचाना आवश्यक है। कीड़ों में मधुआ, दहिया, एवं फल मक्खी का प्रकोप आम तौर पर होता है। बीमारियों में कज्जली फफूंदी, उकठा रोग एंथ्रक्नोज और चूर्णों फफूंदी का प्रकोप बहुधा देखने को मिलता है। कीड़ों एवं बीमारियों के प्रकोप से वृक्षों पर फल नहीं टिकते और बहुत कम उपज प्राप्त होती है। कई बार मंजर ही नहीं निकलते।
मधुआ के नियंत्रण हेतु मंजर निकलते समय रोगर या थायोडॉन (35 ई.सी.) दवा का 30 मि.ली. 30 लीटर पानी में मिलाकर प्रति पेड़ की दर से तीन बार छिड़काव करें। पहला छिड़काव फूल निकलने से पूर्व या मंजर निकलते समय, दूसरा फूल खिलने के पहले एवं तीसरा दूसरे छिड़काव से एक महीने के बाद करें। इस दवा का प्रयोग करना सुरक्षित होगा अगर आस-पास मधुमक्खियों के छत्ते नहीं हो तो रोगर (30 ई.सी.) दवा का 30 मिली लीटर, 30 लीटर पानी में मिला कर प्रति पेड़ की दर से छिड़काव करें। दहिया के नियंत्रण के लिए मेथाईल पाराथिमान 2 प्रतिशत धूल का 5 किलो प्रति वृक्ष की दर से पेड़ के चारों तरफ मिट्टी में दिसम्बर माह के प्रारंभ में मिलावें। जमीन की सतह से 100 सें.मी. ऊपर लगा दें। ऐसा करने से पेड़ पर चढ़ने वाले कीड़े सटकर मर जाते हैं। यदि लेप उपलब्ध नहीं हो तो सेलोटेन कागज या अलकाथिन की 20-25 सें.मी. चौड़ी पत्ती लपेट दें तथा इसके दोनों तरफ गीली मिट्टी से लेप दें ताकि कीट शिशु ऊपर न चढ़ पायें। फल मक्खी के नियंत्रण हेतु मालाथिआन नामक दवा 50 मि.ली. को 50 ली. पानी में घोलकर अप्रैल से मई के बीच 15-20 दिनों के अंतर पर तीन-चार बार छिड़काव करें। बीमारियों से बचाव के लिए धुलनशील गंधक के 2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। उकठा रोग के नियंत्रण हेतु जिनबे 0.2 प्रतिशत या बोर्डो मिश्रण (4:4:50) का प्रयोग करना चाहिए। एंथ्रोक्नोज से बचाव हेतु साफ़ या कम्पेनियन नामक दवा 0.2 प्रतिशत घोल इस्तेमाल करें।
फलन एवं उपज
उपज में द्विवार्षिक फलन की समस्या पायी जाती है। एक वर्ष वृक्ष में अधिक फलते है तो अगले वर्ष बहुत कम। यह समस्या अनुवांशिक है। अत: इसका कोई बहुत कारगर उपाय नहीं है। विगत वर्षो में आम को कई संकर किस्में विकसित हुई है। जो इस समस्या से मुक्त है अत: प्रति वर्ष फल लेने के लिए संकर किस्मों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
आम के वृक्ष चार-पाँच साल की अवस्था में फलना प्रारंम्भ करते है और 12-15 साल की अवस्था में पूर्ण रूपेण प्रौढ़ हो जाती है अगर इनमे फलन काफी हद तक स्थायी हो जाती है। एक प्रौढ़ वृक्ष से 1000 से 3000 तक फल प्राप्त होते है कलमी पौधे अच्छी देख-भाल से 60-70 साल तक अच्छी तरह फलते है।
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