जांच जरूरी है:नियमित रूप से शरीर की जांच कराना स्वास्थ्य से जुड़ी गतिविधियों का अनिवार्य हिस्सा है
परीक्षण से ही चलता है पता
- कई बार जांच कराने से हमें पनपती हुई अथवा छुपी हुई व्याधियों का पता समय रहते चल सकता है। कई बीमारियां ऐसी भी हैं जिनमें कोई लक्षण तब तक नहीं दिखते जब तक कि वे बेहद गंभीर रूप न ले लें।
- उदाहरण के लिए, किडनी जब तक 90 प्रतिशत ख़राब न हो जाए व्यक्ति को कोई तकलीफ़ महसूस ही नहीं होगी, जबकि ख़ून की सस्ती-सी जांच सीरम क्रिएटिन अथवा रीनल फंक्शन टेस्ट या यूरिन टेस्ट से इसे आरंभिक अवस्था में ही देखा जा सकता है।
- लिवर संबंधित क्रॉनिक रोगों में लिवर एंजाइम हल्के से बढ़े होते हैं जिन्हें एकदम शुरू में ही एसजीओटी, एसजीपीटी जैसे रक्त परीक्षणों से ताड़ा जा सकता है। इससे समय रहते उपचार मिलने पर लिवर ख़राब होने से बच सकता है।
- महिलाओं में होने वाले कैंसर के सबसे आम प्रकार हैं सर्विक्स कैंसर एवं ब्रेस्ट कैंसर। इनमें अक्सर स्टेज वन के पार होने के बाद ही मरीज़ को कुछ पता चलता है। अतः सर्विक्स कैंसर के लिए पैप स्मीयर और स्तन कैंसर के लिए मेमोग्राफी जैसी रुटीन जांचें जैसे बेहद अहम हैं।
- बहुत-से लोगों को हाई बीपी महीनों या सालों से होता है परंतु उन्हें मान ही नहीं होता। इसे बहुत साधारण डॉक्टरी जांच से देखा जा सकता है।
- पान-गुटका खाने वाले लोग कान नाक गला विशेषज्ञ से जांच करवा सकते हैं। गले एवं मुंह के कैंसर को आरंभिक अवस्था में पहचानना अति आवश्यक है।
- आंख संबंधी कुछ व्याधियां- जैसे रेटिना की समस्याएं अथवा कांचबिंद- कई बार कोई तकलीफ़ नहीं देतीं जबकि में कुछ ही आसान जांचों से ही इन्हं पहचाना जा सकता है।
- नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर आजकल बहुत अधिक होने वाली समस्या है जिसे शुरुआत में ही जीवनशैली में कुछ बदलाव करके ठीक किया जा सकता है। किंतु वयस्कों में आम हो चली यह समस्या कोई तकलीफ़ नहीं देती एवं मात्र सोनोग्राफी में ही दिखती है।
- विटामिन डी की कमी लगभग 60 प्रतिशत लोगों में मिलती है किंतु इसका पता किसी को नहीं होता। इसकी कमी से धीमे-धीमे हड्डियों का कमज़ोर होना, मांसपेशियों में दर्द, एलर्जी एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी होने लगती है। इसकी रक्त जांच आसान और इलाज सस्ता व प्रभावी है।
- कोलेस्ट्रॉल, लिपिड, शुगर जैसी असामान्यताएं वर्षों तक व्यक्ति में कोई स्पष्ट लक्षण पैदा नहीं करतीं और शांत क़ातिल की तरह चुपचाप मुख्य अंगों को नुक़सान पहुंचाते रह सकती हैं।
- अचानक हृदयाघात के कितने ही क़िस्से आप सुनते हैं। हृदय को ख़ून पहुंचाने वाली कोरोनरी धमनियों में जब तक ब्लॉक बहुत नहीं बढ़ जाता व्यक्ति को कोई तकलीफ़ होती ही नहीं है। इसे भी जांच से शुरुआती अवस्था में ही पहचाना जा सकता है। इसके लिए ईसीजी, टीएमटी, इको, लिपिड प्रोफाइल जैसे परीक्षण आजकल आसानी से सभी जगह उपलब्ध हैं। जोखिम अधिक होने पर सिटी एंजियो या एंजियोग्राफी कराई जाती हैं।
30 की उम्र से करवाएं जांच
परिवार में किसी को मधुमेह, ब्लड प्रेशर, स्ट्रोक, कैंसर, किडनी रोग जैसी समस्याएं हैं या रही हैं तो 30 वर्ष की उम्र से रुटीन जांचें साल में एक बार करवाई जानी चाहिए। कुछ भी असामान्य आने पर आगे की राह अपने चिकित्सक को तय करने देना चाहिए।
- परिवार में रोग का इतिहास न हो और व्यक्ति स्वस्थ हो तो 35 वर्ष की उम्र के बाद साल में एक बार जांचें होनी चाहिए।
- स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों में कोई भी शारीरिक अथवा मानसिक लक्षण होने पर जांच होनी चाहिए।
अंत में, आम प्रवृत्ति के बारे में दो दिलचस्प बातें। लोग अपनी बाइक और कार की सर्विसिंग तो नियमित करवाते हैं किंतु सर्वाधिक क़ीमती मशीन यानी अपने शरीर को यूं ही चलने देते हैं। जांच में कोई गड़बड़ी न आए तो दुखी होते हैं कि पैसे बर्बाद कर दिए, जबकि यह तो ख़ुशी की बात होती है। स्वस्थ रहना है तो इन प्रवृत्तियों को त्याग दें और नियमित रूप से जांचें करवाएं।
जो साल में एक बार होनी चाहिए...
ये वे जांचें हैं जो सामान्यतः चुप्पी शुरुआत करने वाली बीमारियों को आरंभिक अवस्था में पकड़ने में कारगर हैं ―
- रक्त परीक्षण : सीबीसी, एलएफटी, आरएफटी, लिपिड प्रोफाइल, शुगर, एचबी1एसी, थायराइड टेस्ट, विटामिन डी, विटामिन बी-12
- मूत्र : यूरिन आरएम
- आंख : नेत्र विशेषज्ञ द्वारा
- हृदय : ईसीजी, इको, टीएमटी
- महिलाओं के लिए : स्तन कैंसर की आरंभिक जांच मेमोग्राफी एवं सर्विक्स कैंसर की जांच पैप स्मीयर
- नाक कान गला : विशेषज्ञ द्वारा
- पेट : सोनोग्राफी
- नोट- आवश्यक नहीं कि सारी जांचें एक साथ ही कराई जाएं और हर साल कराई जाएं। आरंभिक रक्त जांचों में कुछ पकड़ में आने के बाद अन्य जांचें विशेषज्ञ की सलाह पर कम की जा सकती हैं। ध्यान रहे, यह लेख सामान्य जानकारियों में इज़ाफा करने और जागरूकता बढ़ाने के लिए है। व्यक्तिगत सलाह हर व्यक्ति के लिए अलग ही होगी।
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